तुम्हें देखती हूं तो,लगता है ऐसे
के जैसे युगों से,तुम्हे जानती हूं
अगर तुम हो सागर…..
अगत तुम हो सागर,मैं प्यासी नदी हूं
अगर तुम हो सावन,मैं जलती कली हूं
के जैसे युगों से,तुम्हें जानती हूं
तुम्हें देखती….
- मुझे मेरी नींदें,मेरा चैन दे दो
मुझे मेरी सपनों,की इक रैंन दे दो न
यही बात पहले….
यही बात पहले भी,तुमसे कही थी
के जैसे युगों से,तुम्हें जाती हूं
तुम्हें देखती…. - तुम्हें छूके पल में,बने धूल चन्दन -2
तुम्हारी महक से,महकने लगे तन
मेरे पास आओ.…
मेरे पास आओ,गले से लगाओ
पिया और तुमसे मैं,क्या चाहती हूं
के जैसे युगों से, तुम्हें जानती हूं
तुम्हें देखती…. - मुरलिया समझकर,मुझे तुम उठा लो
बस इक बार होंठों से,अपने लगा लो न
कोई सुर तो जागे….
कोई सुर तो जागे,मेरी धड़कनों में
के मैं अपनी सरगम से,रूठी हुई हूँ
के जैसे युगों से,तुम्हें जानती हूं
तुम्हें देखती हूं तो,लगता है ऐसे
के जैसे युगों से,तुम्हें जानती हूं
तुम्हें देखती…