देखु सखि, द्वै सावन सँग भाय

देखु सखि, द्वै सावन सँग भाय।
सावन महँ जनु तनु धरि सावन, रस बरसावन आय।
इत सावन घनश्याम उतै जनु, तनु घनश्याम जनाय।
इत सावन दामिनि दमकनि उत, पीत – वसन फहराय।
इत सावन नभ इंद्र धनुष उत, मणिगण मुकुट लखाय।
इत सावन बरसावत जल उत, आनँद – जल बरसाया।
इत सावन तृण हरित अवनि उत, काछनि हरित सुहाय।
इत सावन दादुर धुनि उत पग, नूपुर शब्द सुनाय।
दोउ ‘कृपालु’ मनभावन सावन, हिलि मिलि भल छवि छाय॥

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