धरो मन, भानुलली को ध्यान

धरो मन, भानुलली को ध्यान।
जाको ध्यान धरत निशिवासर,
सुंदर श्याम सुजान।
कनक मुकुट सिर चारु चंद्रिका,
तापर लर मुक्तान।
चूनरि जरिन किनार गौर तनु,
नीलांबर परिधान।
श्रुति ताटंक गुंथी वर वेणी,
लजवति भौंह कमान।
नासा भल मुक्ताहल सोहति,
मन मोहति मुसकान।
पग पायल गति अति अभिरामिनि,
लखि मराल सकुचान ।
पाय ‘कृपालु’ सरस अस स्वामिनि,
चरन न कस लपटान॥

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