मैया मैं तो पायो भल गुरु -ज्ञान

मैया मैं तो पायो भल गुरु -ज्ञान ।

कालि गयों कालिंदी तट हौं,
खेलन संग सखान ।

मुनि दुर्वासा ज्ञान दियो तहँ,
दै वेदादि प्रमान ।

कह्यो मनुज तनु को माटी को,
एक खिलौना जान ।

उपजत माटी ते माटी महँ,
मिलत अंत सच मान ।

मैया कह, ‘यह हौंहूँ जानति,
कहा कहन चह कान्ह ।

जो यह जान माय तो काहे,
देति न माटी खान ।

मैया कह लाला ! माटिहिं ते,
उपजत तरुन लतान।

जो खैहौ माटी तो निकसहि,
तरु नासा मुख कान ।

लाला कह अब कबहुँ न खइहौं,
मनहुँ मनहिं डरपान ।

कह ‘कृपालु’ हरि अब जनि सुनियो,
बाबन के व्याख्यान ॥

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