मैया! मैं तो मोहिनि-रूप बनैहौं।
घघरा चुन्नटदार पहिरिहौं, चुनरी शीश धरैहौं।
बेंदी भाल लाल लगवैहौं, सेंदुर माँग भरैहौं।
वेणी गूँथि पहिरि नथ बेसर, सुरमा सुघर लगैहौं।
गर दुलरी, लर हार मोतियन, उर कंचुकी कसैहौं।
कर करपत्र चुरी कंकण-मणि, मेहँदी लाल रचैहौं।
घूँघट को पट घनो काढ़िहौं, लाजन लाज लजैहौं।
नाँव साँवरी सखी धेरैहौं, गति हंसहुँ सकुचैहौं।
कालि छली चंद्रावलि अलि मोहिं, आजु छलन हौं जैहौं।
छलि ‘कृपालु’ इमि चन्द्रावलि कहँ, हौं तेहि मजा चखैहौं॥