श्यामा जब से आई है हाथ तेरे,
कि मुरली को गुमान हो गया।
ओ इसके कट गए चौरासी वाले घेरे,
कि मुरली को गुमान हो गया।
लकड़ी थी बांस की, कोई पूछता ना बात को।
तेरे हाथ लगी ये तो भूल गई औकात को।
ओ पेड़ और भी हैं जंगलों में वथेरे,
कि मुरली को गुमान हो गया…
सोने चांदी वाली कभी मुरली ना बजती।
तेरे हाथ आई श्यामा, बांस की भी सज गई।
ओ मीठे राग सुनाए हर वेले,
कि मुरली को गुमान हो गया…
तेरी मुरली वे श्यामा, सोने भी ना देती है।
घर में हरदम पुकारे लगाती रहती है।
ओ हमें मुरली की तरह रखती है पास पास,
कि मुरली को गुमान हो गया..