ढाँपि मुख कामरि रूठे लाल।
उठहु लाल बेला गोचारण, द्वार टेरि रहे ग्वाल।
कैसेहुँ उठत न, उठत, न बोलत, रिस भौंहन बल भाल।
‘बात कही किन कहा?’ मातु कह, उठि बोले ततकाल।
‘सुनु मैया ! मोते कह भैया’, इमि कहि रुदत गुपाल।
बिनु पितु मातु आपु कह मो कहँ, हँसत ग्वाल दै ताल।
बाबा तोहिं परो पायो कहुँ, कहँ लौं कहौं कुचाल।
तू मैया ! मुसकाति बात सुनि, है यामे कछु जाल।
जो जस होत ‘कृपालु’ कहत तस, यसुमति कह सुनु लाल।।