कृष्ण भजन

फतेहपुर में ठाकुरजी को डंको बाजै आं कै उत्सव में देखो सारो गांव नाचै

तर्ज : अंजन की सीटी में म्हारो मन फतेहपुर में ठाकुर जी कोडंकों बाजैआं कै उत्सव में देखो सारो गांव नाचै

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मुझे छोड़ के न जाओ श्याम

मुझे छोड़ के न जाओ श्याम, पय्या पडू ,  मुझे छोड़ के न जाओ श्याम, पय्या पडू ,   रिश्ते सारे छोड़ के हूँ आई , बंधन सारे तोड़ के हूँ आई ,रिश्ते सारे छोड़ के हूँ आई , बंधन सारे तोड़ के हूँ आई ,अब भेजो ना वापस श्याम, तोरी पय्या पडू ,  अब

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मोक्ष्यस्तोत्रं

मोक्ष्यस्तोत्रं त्वं माता पिता त्वं त्वं बन्धुसखा चत्वं भ्राता त्वं भगिनी त्वं जाया च पुत्रीत्वं पुत्रः त्वं शत्रु पतिप्रेमिकस्त्वंचिदानन्दशुद्धपुरुषः दिव्योत्वम् ।। १ ।। त्वं अधः त्वं ऊर्ध्वः पूर्व पश्चिमौ चत्वं वामदक्षीणो त्वं च सर्वपार्श्वःत्वं अत्र त्वं तत्र सर्वत्र त्वमैवचिदानन्दशुद्धपुरुषः दिव्योत्वम् ।। २ ।। त्वं च पञ्चमात्रा पञ्चेद्रियस्त्वंत्वं च पञ्चप्राणो त्वं च पञ्चकोषःत्रिशरीरो त्वं त्वं च

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कान्हा खो गया मेरा दिल तेरे वृंदावन मे

कान्हा खो गया मेरा दिल तेरे वृंदावन में +2तेरे महलों के अदभुत नजारो मे +2कान्हा खो गया मेरा दिल तेरे वृंदावन में                           सारी दुनिया ने सजदा कियाहै जहांतेरे कदमों में झुकता है सारा जहांलगा दी डूबती नैया किनारे पेकांहा खो गया मेरा दिल

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तुम राधा रमण हो मेरे मैं दास हूं तेरा कब घर मेरे तुम आओ जहां लगता है तेरा पेहरा

दोहा –  भक्तआधीनं, दीनदयालं, राधारमणं हरे हरे ॥          भक्तवत्सलं रसिकनरेशं, राधारमणं हरे हरे ।। ( तर्ज  – तुम जो चले गये तो होगी बड़ी ख़राबी ) तुम राधा रमण हो मेरे मैं दास हूं तेराकब घर मेरे तुम आओ जहां लगता है तेरा पेहरा दुनिया से हार कर में तेरी शरण

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गोपीगीत

गोपीगीत : प. पू. श्री श्रीकान्त दास जी महाराज ।              गोप्य ऊचुःजयति तेऽधिकं जन्मना व्रजःश्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि ।दयित दृश्यतां दिक्षु तावका-स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ॥ १ शरदुदाशये साधुजातसत्सरसिजोदरश्रीमुषा दृशा ।सुरतनाथ तेऽशुल्कदासिकावरद निघ्नतो नेह किं वधः ॥ २ विषजलाप्ययाद् व्यालराक्षसाद्वर्षमारुताद् वैद्युतानलात् ।वृषमयात्मजाद् विश्वतोभया-दृषभ ते वयं रक्षिता मुहुः ॥ ३ न

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सांवरे जल्दी बुला ले मुझे

जब तू बुलाएगा , मैं दौड़ा आऊंगा ,तेरे चरणों में अपने , सर को झुकाऊंगा, सांवरे जल्दी बुला ले मुझे ,सांवरे अपना बना ले मुझे , तेरी मेरी बाते , हर रोज होती हैं ,पर मिलने को तुझसे , अंखिया तरसती हैं ,इन अखियो की कान्हा , प्यास बुझा दे तू ,कब आऊ तेरे दर

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प्रभु दास समझ अपना लेना

हम छोड़ चुके हैं माया को,प्रभु दास समझ अपना लेना ।इस जग की माया-मोह मुझे,भरमाए कभी अपना लेना ।। प्रभु पाप हुआ होगा हमसे,नादानी में तो माफ करो ।हमको है ज्ञान नहीं कुछ भी,प्रभु ज्ञान की ज्योति जला देना ।।हम छोड़…. कुछ समझ नहीं पाया हमने,कैसे प्रभु तुम मिल पाते हो ?जिन्दा हूँ तभी तक

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तुम राधा रमण हो मेरे मैं दास हूं तेरा कब घर मेरे तुम आओ जहां लगता है तेरा पेहरा

दोहा –  भक्तआधीनं, दीनदयालं, राधारमणं हरे हरे ॥          भक्तवत्सलं रसिकनरेशं, राधारमणं हरे हरे ।। ( तर्ज  – तुम जो चले गये तो होगी बड़ी ख़राबी ) तुम राधा रमण हो मेरे मैं दास हूं तेराकब घर मेरे तुम आओ जहां लगता है तेरा पेहरा दुनिया से हार कर में तेरी शरण

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नमन है आपको प्रभुजी मेरी बाधा को हर लेना

प्रार्थना : मेरी बाधा को हर लेना । नमन है आपको प्रभु जी,मेरी बाधा को हर लेना ।न ज्ञानी हूँ न ध्यानी हूँ,मेरे अज्ञान हर लेना ।। हमारे पाप को हरलो,प्रभु संताप को हरलो ।हमारे दंभ को हरलो,मुझे अपना बना लेना ।। नमन है…. सदा सेवा करूँ तन से,करूँ भक्ती सदा मन से ।करूँ मैं

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