ढाँपि मुख कामरि रूठे लाल।
ढाँपि मुख कामरि रूठे लाल।उठहु लाल बेला गोचारण, द्वार टेरि रहे ग्वाल।कैसेहुँ उठत न, उठत, न बोलत, रिस भौंहन बल भाल।‘बात कही किन कहा?’ मातु कह, उठि बोले ततकाल।‘सुनु मैया ! मोते कह भैया’, इमि कहि रुदत गुपाल।बिनु पितु मातु आपु कह मो कहँ, हँसत ग्वाल दै ताल।बाबा तोहिं परो पायो कहुँ, कहँ लौं कहौं […]
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